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चावल के निर्यात पर प्रतिबंध

अब जल्द ही चीनी के निर्यात में प्रतिबन्ध लगा सकती है सरकार

अब जल्द ही चीनी के निर्यात में प्रतिबन्ध लगा सकती है सरकार

भारत में खाद्य चीजों की कमी होने का ख़तरा मंडरा रहा है, इसलिए सरकार ने पहले ही गेहूं और टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब केंद्र सरकार एक और कमोडिटी पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है, वो है चीनी।

सरकार चीनी के निर्यात (cheeni ke niryat, sugar export) पर जल्द ही फैसला ले सकती है क्योंकि इस साल खराब मौसम और कम बरसात की वजह से प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने का उत्पादन कम हुआ है, 

साथ ही कवक रोग के कारण गन्ने की बहुत सारी फसल खराब हो गई है। उत्तर प्रदेश में इस साल सामान्य से 43 फीसदी कम बरसात हुई है।

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इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल सरकार चीनी मिलों को 50 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति ही प्रदान करेगी, इसके बाद देश में होने वाले उत्पादन और खपत का आंकलन करने के बाद आगे की समीक्षा की जाएगी। 

इसके पहले केंद्र सरकार 24 मई को ही चीनी निर्यात को प्रतिबन्धी श्रेणी में स्थानान्तरित कर चुकी है। सरकार इस साल चीनी उत्पादन को लेकर बेहद चिंतित है। 

सरकार के अधिकारी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति और मांग में किस प्रकार से सामंजस्य बैठाया जाए। फिलहाल कुछ राज्यों में इस साल अच्छी बरसात हुई है। 

इन प्रदेशों में गन्ने की खेती के लिए पानी की उपलब्धता लगातार बनी हुई है, जिससे महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के गन्ने के उत्पादन में वृद्धि हुई है, इससे अन्य राज्यों में कम उत्पादन की भरपाई होने की संभावना बनी हुई है। 

साल 2021-22 में चीनी का उत्पादन 360 लाख टन के रिकॉर्ड को छू चुका है, साथ ही इस दौरान चीनी का निर्यात 112 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा।

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सूत्र बताते हैं कि चीनी के उत्पादन के मामलों में सरकार जल्द ही निर्णय ले सकती है, जल्द ही सरकार 50 लाख टन की प्रारंभिक मात्रा की अनुमति दे सकती है। 

भारतीय चीनी मिलें जल्द से जल्द चीनी का निर्यात करके ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के मूड में हैं, क्योंकि अभी इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा नहीं है। 

चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक देश ब्राज़ील अप्रैल से लेकर नवम्बर तक इंटरनेशनल मार्केट में चीनी सप्प्लाई करता है। जिससे इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा हो जाती है और चीनी का वो भाव नहीं मिलता जिस भाव का मिलें अपेक्षा करती हैं। 

इसके साथ ही इस मौसम में चीनी मिलें निर्यात करने के लिए इसलिए इच्छुक हैं क्योंकि इस सीजन में चीनी की कीमत ज्यादा मिलती है। इस समय इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की वर्तमान बोली लगभग 538 डॉलर प्रति टन लगाई जा रही है।

यह सौदा चीनी को घरेलू बाजार में बेचने से ज्यादा लाभ देने वाला है क्योंकि चीनी को घरेलू बाजार में बेचने पर मिल मालिकों को 35,500 रुपये प्रति टन की ही कीमत मिल पाती है।

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जबकि महाराष्ट्र में यह कीमत घटकर 34000 रूपये प्रति टन तक आ जाती है, जिसमें मिल मालिकों को उतना फायदा नहीं हो पाता जितना कि इंटरनेशनल मार्केट में निर्यात करने से होता है। 

इसलिए मिल मालिक ज्यादा से ज्यादा चीनी का भारत से निर्यात करना चाहते हैं। लेकिन सरकार घरेलू जरूरतों को देखते हुए जल्द ही इस निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने का फैसला ले सकती है।

केंद्र द्वारा टूटे चावल को लेकर बड़ा फैसला

केंद्र द्वारा टूटे चावल को लेकर बड़ा फैसला

टूटे चावल व सफेद भूरा के निर्यात (Broken Rice Export) से सम्बंधित केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। केंद्र सरकार का यह निर्णय केवल उन्हीं जारी कांट्रेक्ट के लिए स्वीकृत होगा जो कि ९ सिंतबर से पूर्व हो चुके हैं। इसकी निर्यात करने की अंतिम समयावधि 31 मार्च निर्धारित की गयी है। इसके चलते धान निर्यात करने वालों को काफी फायदा होगा। इस वर्ष मौसम की बदहाली की वजह से धान का उत्पादन बेहद कम रहा है। कठिनाइयों के पूर्वानुमान को देखते हुए केंद्र सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी और इसकी वजह से पहले से ही निर्धारित चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लग गया। फिलहाल केंद्र सरकार द्वारा टूटे चावल व सफेद भूरा के निर्यात से सम्बंधित अहम निर्णय लिया गया है। सरकार द्वारा नवीन अधिसूचना के अंतर्गत 9 सितंबर से पूर्व जारी धान अनुबंध को निर्यात हेतु स्वीकृति मिल चुकी है। इसी संबंध में बहुत सारे धान निर्यातकों द्वारा बंदरगाहों में रुके इस चावल को विदेश भेजने के सन्दर्भ में सरकार समक्ष अपनी बात रखी थी, जिसके उपरांत सरकार द्वारा स्वीकृति मिल गयी है। साथ ही, अन्य चावल निर्यात फिलहाल रुका रहेगा। विशेष बात यह है कि केंद्र सरकार का यह निर्णय केवल उन्हीं जारी कांट्रेक्ट के लिए स्वीकृत होगा जो कि ९ सिंतबर से पूर्व हो चुके हैं।


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केंद्र सरकार द्वारा टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था ?

देश में इस वर्ष बारिश की वजह से फसलों में भारी है। अधिकतर क्षेत्रों में सूखा पड़ने के चलते चावल की रोपाई संपन्न नहीं हो पायी। केंद्र सरकार द्वारा ८ सितम्बर को टूटे चावल पर रोक लगाई गयी थी। फिलहाल विभिन्न देशों को लगभग १० लाख टन चावल निर्यात किया जाना था, जिसे बंदरगाहों पर ही रोक लगने से अटक गया। इसके अतिरिक्त घरेलू आपूर्ति को भी प्रोत्साहित करने के साथ साथ खुदरा दाम को काबू करने हेतु भिन्न - भिन्न श्रेणी के चावलों के निर्यात पर भी २० % तक शुल्क निर्धारित कर दिया था।

भारत करेगा नेपाल को धान का निर्यात

भारत में धान की कम रकबे में रोपाई के बाद भी धान की घरेलू आपूर्ति संतुलित बनी हुई है। इसी के चलते केंद्र सरकार से नेपाल को भी धान निर्यात करने हेतु स्वीकृति मिल गयी है। केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना में ६ लाख टन पिसाई रहित धान नेपाल भेजने का निर्णय लिया गया है। विशेष बात यह है कि नेपाल अपनी अधिकतर खाद्य जरूरतों के लिए दीर्घकाल से भारत पर आश्रित रहता है।

भारत द्वारा ४० % धान निर्यात किया जायेगा

आपको ज्ञात करादें कि पूरी दुनिया में धान की पूर्ति के लिए भारत से लगभग ४०% धान विभिन्न देशों के लिये भेजा जाता है। भारत के सफेद एवं भूरे चावल की सर्वाधिक मांग होती है। लेकिन कुछ देशों में टूटे हुए चावल की भी बेहद मांग है, इसकी मुख्य वजह यही है कि इससे पूर्व भी पिछले माह सरकार द्वारा ३,९७,२६७ टन टूटे चावल के निर्यात को स्वीकृति दी थी। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष २०२२ में भारत से लगभग ९३. लाख मीट्रिक टन चावल विदेशों को निर्यात किया गया है। इस चावल में २१.३१ लाख मीट्रिक टन टूटा हुआ चावल भी सम्मिलित है। साथ ही, चावल के कुल निर्यात में २२.७७ फीसद भागीदारी टूटे हुए चावल की होती है, क्योंकि विभिन्न देशों में अच्छे चावल के साथ-साथ टूटे चावल की भी भारी मांग रहती है। टूटे चावल का इस्तेमाल शराब उद्योग, एथेनॉल उद्योग एवं यहां तक कि पॉल्ट्री एवं पशु उद्योग में भी किया जाता है।